जो बात थी मेरे अधरों पर वो नैनों ने कह डाला है
जीवन के कुछ लमहों को तनहा ही जी डाला है
जबसे अलग हुआ मेरा राही मुझसे
तबसे अपने मंजिल को स्वयं बदल डाला है
नयनों में पीड़ा के आँसू लेकर वो कहते थे
होकर तुझसे दूर सदा बेचैन रहा करते थे
तुझको क्या अब मेरी पीर दिखाई पड़ती नही
मुझको तूने क्यों गम के अंधेरों में डाला है
तुझे देख के मेरे दिल को कुछ राहत तो मिलती थी
तेरी हँसी से मेरी ख़ुशी तो खिलती थी
अब लगता है दिल में तेरे वो जज्बात नही रहे
मुझको बस एक खाली कमरा सा कर डाला है
ता-उम्र संग जीने की इजाजत दी थी तुमने
मेरे संग रहकर अपनी आदत दी थी तुमने
तुझे चाहत की कोई शायद परिभाषा आती नही
फिर भी इश्क सारा मैंने लिख डाला है
लवविवेक मौर्या उर्फ़ हेमू
पिरथीपुरवा निघासन(खीरी)
शायर